छठ पूजा में खरना का विशेष महत्व है। खरना छठ पूजा के दूसरे दिन मनाया जाता है, जो कार्तिक मास की शुक्ल पंचमी तिथि को होता है। यह छठ व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें व्रती (व्रत रखने वाले) और उनके परिवार के लिए कुछ खास अनुष्ठान किए जाते हैं। खरना के पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और सामाजिक कारण हैं। आइए समझते हैं कि खरना क्यों होता है:
1. व्रत की तैयारी और शुद्धिकरण
- खरना का दिन व्रत की कठिन प्रक्रिया के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार होने का प्रतीक है। इस दिन व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद विशेष प्रसाद (खीर, रोटी, और गुड़ से बनी रस्सी) ग्रहण करते हैं। यह प्रसाद बहुत ही सात्विक और सादा होता है, जो शरीर को शुद्ध करता है और अगले दो दिनों के कठिन निर्जला व्रत के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
- खरना का उपवास और प्रसाद ग्रहण करना व्रती के आत्मसंयम, समर्पण और शुद्धता को दर्शाता है।
2. छठी मइया और सूर्यदेव के प्रति समर्पण
- खरना का प्रसाद छठी मइया (षष्ठी देवी) और सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है। यह अनुष्ठान छठी मइया के प्रति श्रद्धा और विश्वास को दर्शाता है, जो संतान की रक्षा और परिवार की समृद्धि की देवी मानी जाती हैं।
- इस दिन का उपवास और प्रसाद ग्रहण करना छठी मइया और सूर्यदेव के प्रति भक्ति और कृतज्ञता प्रकट करने का एक तरीका है।
3. सामाजिक और पारिवारिक एकता
- खरना के दिन व्रती द्वारा बनाया गया प्रसाद परिवार और समुदाय के साथ बांटा जाता है। यह सामाजिक एकता और प्रेम को बढ़ावा देता है। खरना का प्रसाद सभी के लिए शुभ माना जाता है, और इसे ग्रहण करने से परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
- यह परंपरा परिवार के सदस्यों को एक साथ लाती है और सामुदायिक भावना को मजबूत करती है।
4. आध्यात्मिक और अनुशासनात्मक महत्व
- खरना का उपवास व्रती को आत्मानुशासन और संयम सिखाता है। यह एक तरह से व्रत की कठिनाइयों के लिए मन और शरीर को तैयार करने का अभ्यास है। खरना के बाद शुरू होने वाला 36 घंटे का निर्जला व्रत बहुत कठिन होता है, और खरना का दिन इसकी तैयारी में मदद करता है।
- यह दिन भक्तों को यह सिखाता है कि सादगी और शुद्धता के साथ भक्ति कैसे की जाए।
खरना की प्रक्रिया:
- उपवास: व्रती दिनभर बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखते हैं।
- प्रसाद तैयार करना: शाम को सूर्यास्त के बाद व्रती स्वयं रसोई में सात्विक भोजन बनाते हैं। इसमें गुड़ की खीर, गेहूं की रोटी (पूरी) और फल शामिल होते हैं।
- पूजा और अर्पण: प्रसाद को छठी मइया और सूर्यदेव को अर्पित किया जाता है।
- प्रसाद ग्रहण: व्रती और परिवार के सदस्य प्रसाद ग्रहण करते हैं। इसके बाद व्रती अगले दिन से निर्जला व्रत शुरू करते हैं।
निष्कर्ष:
खरना छठ पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो व्रती को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से अगले कठिन व्रत के लिए तैयार करता है। यह छठी मइया और सूर्यदेव के प्रति श्रद्धा, समर्पण और कृतज्ञता का प्रतीक है। साथ ही, यह सामाजिक और पारिवारिक एकता को बढ़ावा देता है। यह अनुष्ठान न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह व्रती को आत्मसंयम और सादगी का पाठ भी पढ़ाता है।
.jpg)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें