जब भी हम सफलता की कहानियों की बात करते हैं, तो अक्सर हमारे ज़ेहन में बड़े शहरों की तस्वीरें, नामचीन स्कूलों के छात्र और अंग्रेज़ी बोलते युवा उभरते हैं। मगर असली प्रेरणा तो वहां से आती है, जहां संसाधन नहीं, सिर्फ संघर्ष होता है। बाराबंकी जिले के एक छोटे से गांव निजामपुर में रहने वाले रामकेवल की कहानी कुछ ऐसी ही है।
निजामपुर, जो अहमदपुर गांव का हिस्सा है, महज़ 40 घरों और दो सौ लोगों की आबादी वाला एक छोटा सा दलित बस्ती है। यहां के लोग खेती-बाड़ी और दिहाड़ी मज़दूरी से अपना पेट पालते हैं। ऐसे गांव में जहां आज़ादी के बाद से अब तक किसी ने हाई स्कूल पास नहीं किया था, वहीं से एक लड़के ने इतिहास रच दिया—नाम है रामकेवल।
रामकेवल का जीवन कोई आम जीवन नहीं है। वह रात भर शादियों में लाइट्स ढोता था, सिर पर भारी-भरकम बिजली की मशीनें रखकर बारातों में रोशनी करता था, ताकि कुछ पैसे जुटा सके। लेकिन जैसे ही रात बीतती, अगली सुबह बिना थके, बिना रुके, स्कूल पहुँच जाता था। थकावट नहीं थी उसके इरादों में, क्योंकि सपने भारी थे—और उन्हें पूरा करना ही था।
हाई स्कूल पास करने वाला वह अपने गांव का पहला छात्र बना। और यही बात इस कहानी को खास बनाती है। ये सिर्फ एक डिग्री नहीं, बल्कि पूरे गांव की सोच में बदलाव की शुरुआत है।
रामकेवल ने यह साबित किया है कि ज़िंदगी में संसाधनों की कमी हो सकती है, लेकिन अगर जज़्बा हो, तो रास्ते खुद बनते हैं। उसके सपनों में सिर्फ अपना उजाला नहीं, पूरे गांव की उम्मीदें चमक रही हैं।
आज निजामपुर में रामकेवल एक नाम नहीं, एक उम्मीद है। एक ऐसा चेहरा जिसे देख कर छोटे-छोटे बच्चे अब किताबों की ओर बढ़ते हैं। और शायद यही सबसे बड़ी कामयाबी है—जब आपकी कहानी दूसरों को बदलने लगे।
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