छठ पूजा भारत के पूर्वी हिस्सों, विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाने वाला एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार विशेष रूप से सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना के लिए प्रसिद्ध है। छठ पूजा का इतिहास अत्यंत प्राचीन है, और इसकी शुरुआत के संदर्भ में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं।
छठ पूजा का पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व
छठ पूजा की शुरुआत को लेकर दो मुख्य कथाएं प्रचलित हैं - एक पौराणिक और दूसरी महाभारत से जुड़ी ऐतिहासिक कथा।
1. पौराणिक कथा: छठी मैया की पूजा
छठ पूजा में छठी मैया की उपासना की जाती है, जिन्हें सूर्य देव की बहन माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, छठी मैया संतानों और परिवार की रक्षा करती हैं और व्रत करने वाले की मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। इसे प्रकृति के साथ एक गहरा संबंध माना जाता है और इसी कारण सूर्य देवता को धन्यवाद अर्पित करने के लिए यह पूजा की जाती है।
2. महाभारत से जुड़ी कथा: कुंती और कर्ण की कहानी
महाभारत में सूर्य पुत्र कर्ण का उल्लेख है, जो भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे। ऐसा माना जाता है कि कर्ण से ही सूर्य पूजा का यह स्वरूप विकसित हुआ, और बाद में इसे छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा। इसके अलावा, पांडवों के वनवास के समय द्रौपदी ने भी अपने परिवार की रक्षा और सुख-समृद्धि के लिए सूर्य देव की उपासना की थी, जिससे यह पूजा और भी महत्वपूर्ण हो गई।
छठ पूजा की उत्पत्ति और विकास
छठ पूजा का प्राचीन इतिहास वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। इसे वैदिक परंपरा में प्रकृति पूजा और सौर ऊर्जा के स्रोत के रूप में देखा गया है। यह पूजा सूर्य की ऊर्जा, जीवन शक्ति और उसकी कृपा के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता का प्रतीक है। माना जाता है कि छठ पूजा का उद्देश्य प्रकृति, जल, वायु और सूर्य से मिल रही शक्ति को धन्यवाद देना है।
इस पूजा की शुरुआत मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हुई थी और समय के साथ यह पूरे भारत में फैल गई। आज यह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक एकता का भी प्रतीक बन गई है।
छठ पूजा की प्रमुख रीतियाँ
छठ पूजा में कुल चार दिनों का उपवास और सख्त नियम पालन किया जाता है। इसमें व्रती बिना अन्न-जल के रहकर सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा करते हैं। इस दौरान भक्त गंगा, यमुना या किसी भी पवित्र नदी या तालाब में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। यह रीतियाँ छठ पूजा को और भी पवित्र और अनूठा बनाती हैं।
निष्कर्ष
छठ पूजा भारतीय संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है जो हमें प्रकृति और हमारे पूर्वजों के साथ जोड़ती है। इसका इतिहास और उत्पत्ति जितनी पौराणिक है, उतनी ही वैज्ञानिक भी है। आज के समय में यह पर्व न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि एकता, परिवार और समाज को जोड़ने का माध्यम भी है।
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