रविवार, 27 अक्टूबर 2024

Dipawali why celebrate, when started diwali, why celebrate diwali दीपावली का महोत्सव: दीवाली क्यों मनाई जाती है, दीवाली कब शुरू हुई, और हम दीवाली क्यों मनाते हैं? पौराणिक कथा, सांस्कृतिक महत्व और आधुनिक परिप्रेक्ष्य

दीपावली, जिसे हम दीवाली के नाम से भी जानते हैं, भारत का सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहार है। यह त्योहार अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, और बुराई से अच्छाई की ओर बढ़ने का प्रतीक है। दीपावली का पर्व पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। 


दीपावली का इतिहास और आरंभ

दीपावली का संबंध पौराणिक कथाओं से है। इसका सबसे लोकप्रिय प्रसंग भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का है। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने 14 वर्षों का वनवास पूरा कर राक्षस राजा रावण का वध किया और माता सीता को लंका से मुक्त कराकर अयोध्या लौटे। उनके आगमन पर अयोध्या की जनता ने दीपों की पंक्ति जलाकर उनका स्वागत किया, तभी से यह पर्व दीपों का पर्व कहलाने लगा। 

इसके अलावा दीपावली का संबंध माता लक्ष्मी से भी है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था, और तभी से मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व दीपावली पर माना जाने लगा। व्यापारी वर्ग के लिए भी यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी दिन से नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत मानी जाती है। लोग इस दिन माता लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए विशेष पूजा करते हैं ताकि उनके घरों में समृद्धि और सुख-शांति बनी रहे। 

दीपावली के पांच दिन

दीपावली केवल एक दिन का त्योहार नहीं है, बल्कि यह पांच दिनों तक मनाया जाता है। 

1. **धनतेरस**: दीपावली का पहला दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को धन्वंतरि त्रयोदशी भी कहते हैं। लोग इस दिन नए बर्तन, सोने-चांदी के आभूषण, या अन्य कीमती वस्तुएँ खरीदते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है। 

2. **नरक चतुर्दशी**: इसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था और लोगों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई थी। इसलिए इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। 

3. **मुख्य दिवाली**: इस दिन को मुख्य दिवाली कहा जाता है, जिसमें माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कुबेर की विशेष पूजा होती है। लोग अपने घरों और दफ्तरों को सजाते हैं, दीपक जलाते हैं और पटाखे फोड़ते हैं। इस दिन का मुख्य उद्देश्य माता लक्ष्मी को प्रसन्न करना और अपने जीवन में सुख-समृद्धि का स्वागत करना है। 

4. **गोवर्धन पूजा**: इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्रदेव के प्रकोप से गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों की रक्षा की थी। इसलिए इसे गोवर्धन पूजा के रूप में मनाया जाता है। 

5. **भाई दूज**: भाई दूज का पर्व भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बनाता है। इस दिन बहनें अपने भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। 

दीपावली का सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

दीपावली का हमारे समाज और संस्कृति में एक विशेष स्थान है। यह त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह समाज में एकता, भाईचारे और प्रेम का भी संदेश देता है। दीपावली का पर्व हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान की भावना को बढ़ाने की प्रेरणा देता है। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं और मिलकर खुशियाँ मनाते हैं। 

दीपावली का मुख्य उद्देश्य लोगों में सकारात्मकता का संचार करना है। इस त्योहार के माध्यम से हमें जीवन में अपने अंदर के अंधकार को दूर कर प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएँ, हमें सच्चाई और अच्छाई का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।

दीपावली पर पर्यावरण का प्रभाव और हमारा कर्तव्य

वर्तमान समय में दीपावली मनाने का तरीका भी बदल गया है। जहाँ एक ओर पटाखों की आवाज से उत्सव की रौनक बढ़ती है, वहीं यह पर्यावरण के लिए नुकसानदायक भी है। पटाखों से निकलने वाला धुआं और ध्वनि प्रदूषण पर्यावरण को हानि पहुँचाता है। इसके अलावा, पशु-पक्षी भी इस शोर से प्रभावित होते हैं। 

इसलिए आजकल पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है, और लोग अब अधिकतर दीयों, मोमबत्तियों, और सजावट पर ध्यान दे रहे हैं। कई लोग अब हरित दिवाली मनाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं, जिसमें कम पटाखों का उपयोग और अधिक प्राकृतिक सजावट का सहारा लिया जा रहा है।

दीपावली का आध्यात्मिक महत्व

दीपावली न केवल एक पर्व है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यात्रा का प्रतीक भी है। दीपावली का अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर", और यह हमें यह प्रेरणा देता है कि जीवन के हर अंधेरे को पार कर हमें प्रकाश की ओर बढ़ना चाहिए। यह त्योहार हमें अपने अंदर के विकारों, जैसे कि अहंकार, द्वेष, और असत्यता को त्यागने की प्रेरणा देता है और हमें प्रेम, करुणा, और सत्यता की राह पर चलने के लिए प्रेरित करता है। 

दीपावली के दौरान की जाने वाली लक्ष्मी पूजा न केवल आर्थिक समृद्धि का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में हर क्षेत्र में समृद्धि और संतोष प्राप्त करने का भी प्रतीक है। देवी लक्ष्मी की पूजा करके हम उनके आशीर्वाद को पाने की प्रार्थना करते हैं ताकि हमारा जीवन सुखमय और समृद्ध हो। 

दीपावली का वर्तमान रूप

आज दीपावली केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी धूमधाम से मनाई जाती है। विदेशों में बसे भारतीय इस पर्व को मनाकर अपनी संस्कृति को जीवित रखते हैं। वे अपने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर दीपावली मनाते हैं, और इस तरह यह पर्व विश्वभर में भारतीय संस्कृति का परिचायक बन गया है। 

वर्तमान में दीपावली मनाने के तरीके में थोड़ा बदलाव आ गया है। लोग अब नए वस्त्र, गहने, मिठाइयाँ, और उपहार लेकर अपने प्रियजनों को उपहार देते हैं। इस पर्व का सबसे आकर्षक पहलू यह है कि इसमें पूरे परिवार और समाज को साथ लेकर चलने का भाव होता है। लोग अपने घरों को रंग-बिरंगी रोशनी, दीयों और मोमबत्तियों से सजाते हैं, जो दीपावली के महत्व को और भी बढ़ा देता है।

निष्कर्ष

दीपावली का पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर, और बुराई से अच्छाई की ओर बढ़ने का प्रतीक है। यह त्योहार हमारे जीवन में सकारात्मकता, सुख, और समृद्धि का संचार करता है। दीपावली हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर तरह की कठिनाई को पार कर हमें अपने उद्देश्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए। 

आज के समय में जब पर्यावरण की रक्षा का प्रश्न उठ रहा है, हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम दीपावली को एक हरित और स्वस्थ तरीके से मनाएँ ताकि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक सुखद पर्व बना रहे। दीपावली का यह पर्व हमें आपसी भाईचारे और प्रेम के साथ मिलकर खुशियाँ बाँटने का अवसर देता है।


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